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उ॒त त्या मे॒ हव॒मा ज॑ग्म्यातं॒ नास॑त्या धी॒भिर्यु॒वम॒ङ्ग वि॑प्रा। अत्रिं॒ न म॒हस्तम॑सोऽमुमुक्तं॒ तूर्व॑तं नरा दुरि॒ताद॒भीके॑ ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta tyā me havam ā jagmyātaṁ nāsatyā dhībhir yuvam aṅga viprā | atriṁ na mahas tamaso mumuktaṁ tūrvataṁ narā duritād abhīke ||

पद पाठ

उ॒त। त्या। मे॒। हव॑म्। आ। ज॒ग्म्या॒त॒म्। नास॑त्या। धी॒भिः। यु॒वम्। अ॒ङ्ग। वि॒प्रा॒। अत्रि॑म्। न। म॒हः। तम॑सः। अ॒मु॒मु॒क्त॒म्। तूर्व॑तम्। न॒रा॒। दुः॒ऽइ॒तात्। अ॒भीके॑ ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:50» मन्त्र:10 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:9» मन्त्र:5 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को किनके सङ्ग से कैसा होना योग्य है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अङ्ग) मित्र ! (नासत्या) सत्य आचरण करनेवाले (विप्रा) मेधावी अध्यापक और उपदेशक (नरा) नायक सब में श्रेष्ठजन (त्या) वे (युवम्) तुम दोनों (धीभिः) उत्तम बुद्धि वा कर्मों से (मे) मेरे (अभीके) समीप में (हवम्) लेने योग्य पदार्थ को (आ, जग्म्यातम्) सब ओर से प्राप्त होओ (उत) और जैसे (महः) महान् (तमसः) अन्धकार से (अत्रिम्) सूर्य को (न) वैसे (दुरितात्) अधर्माचरण से (अमुमुक्तम्) छुड़ाओ और दुर्गुणों को (तूर्वतम्) नष्ट करो ॥१०॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे सूर्योदय को प्राप्त होकर सब पदार्थ अन्धकार से छूट जाते हैं, वैसे धार्मिक विद्वान् को प्राप्त होकर अविद्या से मनुष्य मुक्त होते हैं ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः केषां सङ्गेन कीदृशैर्भवितव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे अङ्ग ! नासत्या विप्रा नरा त्या युवं धीभिर्मेऽभीके हवमा जग्म्यातमुत यथा महस्तमसोऽत्रिं न दुरितादमुमुक्तं दुर्गुणांस्तूर्वतम् ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अपि (त्या) तौ (मे) मम (हवम्) आदातव्यम् (आ) (जग्म्यातम्) प्राप्नुयातम् (नासत्या) सत्याचारिणौ (धीभिः) प्रज्ञाभिः कर्मभिर्वा (युवम्) युवाम् (अङ्ग) मित्र (विप्रा) मेधाविनावध्यापकोपदेशकौ (अत्रिम्) सूर्य्यम् (न) इव (महः) महतः (तमसः) अन्धकारस्य (अमुमुक्तम्) मोचयेतम् (तूर्वतम्) हिंस्यातम् (नरा) नायकौ (दुरितात्) अधर्माचरणात् (अभीके) समीपे ॥१०॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा सूर्य्योदयं प्राप्य सर्वे पदार्थास्तमसो मुक्ता जायन्ते तथा धार्मिकं विद्वासं प्राप्याऽविद्याया जना मुक्ता जायन्ते ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा सूर्योदय झाल्यावर सर्व पदार्थ अंधारातून मुक्त होतात तसे धार्मिक विद्वानामुळे माणसे अविद्येतून मुक्त होतात. ॥ १० ॥